बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

Dosti

फूलो की खुशबू को चुराया नही जाता
पर लोग चुराने की कोशिश करते है।
सूरज की रोशनी को छुपाया नही जाता

पर छुपाने की कोशिश कर लेते है।

दोस्ती में दूरी माने नहीं रखती है

पर लोग कान भर कर दूरी बढ़ा देते है।

कान के कच्चे दोस्ती को भुला देता है।

मांगी जिसने चांदनी उसे चांदनी मिली

रोशनी मांगने वाले को रोशनी मिली

मैं भगवान से दोस्ती मांगी
मुझे आप जैसे पक्के कान दोस्त मिले।



मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008


शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

क्या देंखु

मै धर्म देखू या कर्म देखू

रिश्ता देखू या कर्यव्य देखु

गर डूब रही हो जिंदगी की नैया

तो माँ देखु या बीबी देखू।

एक भविष्य है जिसने वर्तमान दिखाया

एक वर्तमान है जो भविष्य दिखाये।

समाज को देखू या अपनी बेवसी देखू

उंचे महल देखू या फुटपाथ पर सोती जिंदगी देखु

वसंत की मस्ती की हिलोरों को कम करती जेब देखू
बीबी बच्चो की अपनी तरफ आशा से उठती निगाहें देंखु

या बेटी के दहेज की लिए कोई जुगाड़ देखू

अव ये खुदा तू ही बता में देखु तो क्या देखू


अजीत कुमार मिश्रा

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

यह ब्रेकिंग न्यज नहीं बन सकती

भाई अभिषेक आढ़ा की यह भड़ास सही है क्योकि इसमें न तो किसी बड़े आदमी को छींक आई न ही किसी ब़ड़े आदमी ने किसी को थप्पड़ मारा यहा तो गरीबी ने गरीब को मारा । जो आया वो जायेगा तो फिर क्यों इतने अस्पताल और कानून व्यवस्था को पुलिस, कोर्ट इत्यादि खोलो गयें है।
Blog Entryआंसू बहाती मां, गंदा पानी और घटिया मंत्रीF



eb 18, '08 2:53 AM
for everyone
मामला राखी सावंत के अपने प्रेमी कॊ थप्पड़ मारने या बच्चन कॊ जुखाम हॊने का नहीं है। जॊ मैं भड़ासी बन गया हूं। इस फॊटॊ में अपनी छाती से लगाए बैठी मां की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपनी बेटी कॊ सरकारी सप्लाई का पानी पिला दिया था। पिछले चार महीनॊं में दूषित पानी के कारण जयपुर में सात लॊगॊं की मॊत हॊ चुकी है। जॊ मरे वॊ कच्ची बस्ती जैसे इलाके के थे इसलिए मन्त्री सांवर लाल जाट का बयान आया कि जॊ आया है वॊ तॊ जाएगा ही।

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008

मेरी ट्रेन यात्रा

पता आप लोगो में से कितनो ने भारतीय रेल से यात्रा की होगी और वो भी साधारण क्लास से । एक दिन अकस्मात मुझे दिल्ली जाना पड़ गया । कानपुर से रात में श्रमशक्ति ११.४० पर जाती है। सोचा कही न कहीं जगह मिल ही जायेगी। लेकिन जो नजारा था उससे के बाद मेरे ज्ञान में अभूतपुर्व वृद्धि हो गयी उसी वृद्धि को आप लोगो बाट रहा जिसे अच्छी लेगे ले ले।कुछ पुलिस तथा कुली बाकयदा सीट दिलाने का ठेका लिये हुये थे तथा जिनसे बात होती जाती थी उनको ट्रेन आने से पहले प्लेटफार्म के दूसरी तरफ पानी भरने के पाइप के पास खड़ा कर दिया गया तथा जेसे ही गाड़ी आयी पहले दरवाजा दूसरी तरफ से खोला गया तथा जब सभी लोग बैठ गये तो प्लेटफार्म की तरफ का दरवाजा खोला गया साथ ही कुली भी बैठे लोगो से पूछ रहे थे तुम किसके साथ हो यदि कोई जवाब न मिलता तो उसे बाँह पकड़कर उठा देते थे। तो इस तरह ट्रेन में सीट पक्की होती थी। सीट लेने का ठेका ३०-५० रुपये के बीच था जैसा भी तय हो जाये।
तो इस तरह से साधारण क्लास में लोगो से लूट होती है। वैसे शायद रेल मंत्री जी को इस पर विचार करना चाहिये रेल की कुछ आमदनी बढ़ जायेगी और कहने को भी हो जायेगा कि हमने किराया नहीं बढ़ाया।