शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

सनातन धर्म में अवतार की अवधारणा और सृष्टि का विकास

सनातन धर्म में अवतार की अवधारणा और सृष्टि का विकास सनातन धर्म में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों एवं उनके कारणों का वर्णन मिलता है। लगभग सभी अवतारों का मुख्य उद्देश्य वेद सम्मत व्यवस्था को लाना तथा दुष्ट प्रवित्तयों को खत्म करना ही रहा है। लगभग सभी अवतार में किसी न किसी राक्षस के आतंक का अंत करना ही बताया गया है। लेकिन सृष्टि के विकास क्रम को विज्ञान की दृष्टि अवतारों को देखें तो इन अवतारों के माध्यम से हमें सृष्टि के विकास का क्रम भी मिलता है जो कि विज्ञान क्रम से मिलता है। भगवान का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार कहा गया है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की थी। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया। विज्ञान की दृष्टि में यदि हम देखते हैं तो जीवन का आरंभ जल में (समुद्र) में ही हुया है। और समुद्र से जीवन थल पर तब आया जब पृथ्वी पर सूर्य की परा बैगनी किरणों को रोकने कि लिए ओजोन पर्त का निर्माण हुआ। द्धितीय अवतार कूर्म अवतार माना जाता है। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों (लक्ष्मी , मणि, रम्भा, वारूणी, अमृत, शंख, गजराज (ऐरावत), कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, कामधेनु, धनुष, धन्वतरि, विष, बाज पक्षी) की प्राप्ती की। (इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।) विज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी पर ओजोन पर्त का निर्माण हो गया तो जीवन का विकास थल पर शुरु हुया जो कि समुद्र के जीवों के द्वारा ही किया गया। अगर ध्यान से देखे तो कूर्म (कछुआ) पानी में ज्यादा रहता है। परन्तु साँस लेने के लिए हर 10-15 मिनट बाद पानी से बाहर आता है। यानि कि ऐसा जीव जो थल कम और पानी में ज्यादा रहता हो। तृतीय अवतार वराहावतार : वराह के अवतार में भगवान विष्णु ने महासागर में जाकर भूमि देवी कि रक्षा की थी, जो महासागर की तह में पँहुच गयीं थीं। एक मान्यता के अनुसार इस रूप में भगवान ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध भी किया था। जब जीवन थल पर आया तो ऐसे जीव थल पर आये जो कि जल मे ज्यादा और थल पर कम रहते थे। अगर वराह (सूकर) को ध्यान से देखे तो यह एक ऐसा जीव जो कि कीचड़ ज्यादा पसंद करता न कि जल। Amphibians क्लास के जीव. चतुर्थ अवतार नरसिंहावतार नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी और उसके पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस अवतार से भगवान के निर्गुण होने की विद्या प्राप्त होती है। इसी अवतार को जब विज्ञान की दृष्टि में रखकर देखते हैं तो हम पाते है कि इस समय तक मानव का आदिरुप प्रकट हो चुका था साथ ही मनुष्य के जीवन में सामाजिक संगठन गठित हो चुका था परन्तु वह आज के मानव (Homo sapiens ) काफी पीछे था मुख्य वास जंगल ही था। देखने में बहुत मानव और जानवर का मिला जुला रुप था। यानी मानव समाज ने एक सामाजिक संगठन बना लिया था परन्तु वह संगठन बहुत जटिल नहीं था। आज भी भारत में कई जन-जातियां आदि जीवन यापन करती है। उनके रहने का ढ़ंग भी बिलकुल आदिम युग ही है यहां तक कुछ जन-जातियां ने अभी वस्त्र भी पहनने नहीं सीखे है, या सीख रहे हैं । परन्तु उनमें भी एक सामाजिक संगठन है। और कई संगठन को मिलाकर जो एक मुखिया बनता है। उसे वह कैप्टन कहते है। पाठक जरूर सोचेंगे कि वस्त्र पहननें आये नहीं परन्तु अंग्रेजी भाषा का शब्द कहां से सीख लिया तो इसका उत्तर यह है कि यह जन-जातिया कुछ समय तक अंग्रेजी और जापान के अधीन क्षेत्र में निवास करती रही हैं। बतौर उदाहरण अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाली कुछ जनजातियां (जरावा, सेंटीनल इत्यादि)। पंचमवामन् अवतार: इसमें विष्णु जी वामन् (बौने) के रूप में प्रकट हुए। भक्त प्रह्लादके पौत्र, असुरराज राज बलि से देवतओं की रक्षा के लिए भगवान ने वामन अवतार धारण किया। इसी अवतार को आधुनिक ज्ञान की दूष्टि से देखे तो मानव का जीव विज्ञान की परिभाषा के अनुसार ( Homo sapiens) का प्रादुर्भाव हो चुका था साथ ही उसका सामाजिक संगठ एक राज्य रुप जो गठित हुया था उसमें बुराई को रोकने के प्रयास भी शुरू हो चुके थे। षष्ठ अवतार परशुराम अवतार: इसमें विष्णु जी ने परशुराम के रूप में असुरों का संहार किया। आधुनिक विज्ञान के अनुसार मानव के विकास की वह अवस्था थी जिसमें कि मानव ने अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग भी सीख लिया था परन्तु ज्यादातर अस्त्र ज्यादा घातक नहीं थी इसी युग में राज विस्तार जैसी मानसिकता भी देखने को मिलती है। परशुराम का मुख्य अस्त्र फरसा था इसी युग में एक अवतार और हुया था जिसमें विकास के क्रम और विनासक शस्त्र सामनें आये। पशुधन के साथ साथ खेती का प्रयोग भी शुरु हो चुका था। सप्तम राम अवतार: राम ने रावण का वध किया जो रामायण में वर्णित है। इस समय में परशुराम और राम के युग का संधिकाल हुआ। मानव विकास के क्रम में नये और ज्यादा मारक क्षमता के अस्त्र और शस्त्र सामने आये। मुख्य व्यवसाय पशु-पालन था। लोग प्रकृति पर ही निर्भर रहते थे। अष्टम कृष्णावतार: भगवान श्रीकृष्ण अपने सव््ाभाविक रूप मे देवकी और वसुदेव के घर जन्म लिया था। उनका लालन पालन यशोदा और नंद ने किया था। इस अवतार का विस्तृत वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण मे मिलता है। मानव विकास क्रम को देखे तो इस युग में प्रकृत की पूजा की परंपरा विद्यमान थी। परन्तु कृषि का उपयोग शुरु हो चुका था। मानव ने कृषि को एक व्यवसाय के रुप में ग्रहण कर लिया था। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का मुख्य अस्त्र हल ही था जो कि कृषि का प्रतीक है। नवम बुद्ध अवतार: इसमें विष्णुजी बुद्ध के रूप में असुरों को वेद की शिक्षा के लिये तैयार करने के लिये प्रकट हुए। मानव विकास के क्रम में इस काल में मानव ने शिक्षा को आम जन तक पहुचाने का प्रयास किया। दूसरे शब्दों में शिक्षा के महत्व को पहचान कर उसे आम जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। कुछ लोग इस अवतार को गौतम बुद्ध से जोड़कर देखते है। परन्तु गौतम बुद्ध का कार्यक्षेत्र ज्यादातर उत्तरी क्षेत्र रहा जबकि बुद्दावतार में बुद्ध का कार्य क्षेत्र दक्षिण भारत रहा। दसम कल्कि अवतार: इसमें विष्णु जी भविष्य में कलयुग के अंत में आयेंगे। चूंकि यह अवतार अभी हुया नहीं है। इस लिए मानव विकास क्रम में किस बिन्दु की ओर इशारा करता यह स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। परन्तु इतना ज़रुर है कि कलयुग का अंत में जब पाप बहुत बढ़ जायेगा तो उसे खत्म करने को यह अवतार होगा। पाप क्या है और उस समय क्या होगा यह आज के समय को ध्यान में रखकर अनुमान लगाया जा सकता है। घोषणाः (इस लेख के में दिये गये विचार मेरी अपनी जानकारी, विचार पर आधारित हैं यदि किसी प्रमाणिक तथ्य के विपरीत मेरे विचार है तो उस प्रमाणिक तथ्य को ही माना जाए। इस लेख का उद्देश्य एक सामान्य सी जानकारी देना भर है न कि किसी की भावनाओं आहत करना । यदि किसी की भावना आहत होती है तो उसके लिए में क्षमा प्रार्थी हूँ।) अजीत कुमार मिश्रा, Email- ajitkumarmishra@hotmail.com पी-33/2, ओल्ड एम.एच. एरिया, कानपुर छावनी-208004 दूरभाषः 9807588355, 8090030844