शुक्रवार, 13 जून 2008

एक कविता



तोड़कर क्राकरी जब महरी आँख दिखाती है
काम छोड़ने को कह कर धमकाती है।
चाय में नमक और सब्जी में चीनी पड़ जाती है
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।
सब्जी साबुत रहती है और उंगली कट जाती है।
रोटी कच्ची रहती है और उंगली जल जाती है।
खाना खाने की जगह पेट भर लेता हूँ।
पेन्ट की जगह पजामा पहन लेता हूँ।
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।
तुम्हारा लड़ना तुम्हारा झगड़ना।
बात बात पर तुम्हारा अकड़ना।
तुम्हारा मुस्कराना, तुम्हारा प्यार जताना।
जरासी बात पर अपना मुंह फुलाना।
तन्हाई मुझे सब याद दिलाती है।
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।

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