बुधवार, 25 जून 2008

शनिवार, 21 जून 2008

आत्म विश्वास और समस्या का हल



मेरी नजर में आत्म विश्वास को खोने का सबसे बड़ा कारण है अधिकतर लोग समस्या का खत्म करना चाहते है। जबकि समस्या कोई बीमारी नहीं जिसका इलाज के द्वारा खत्म किया जा सके। समस्या तो एक सतत् प्रक्रिया है जो कभी खत्म नहीं हो सकती जो इसे जीतने के लिए लड़ने लगते है वो हारने पर बुरी तरह परेशान हो जाते और कभी कभी आत्महत्या भी कर लेते। वैसे मरने के बाद कोई समस्या नही रहती तो क्या समस्या का हल मरना है नहीं। प्रश्न है कैसे हल किया जाये। मेरी नजर मे दो तरीके है। पहला है जाल में फसे शेर की तरह से पूरी ताकत जाल को तोड़ने में लगाना पर शायद ही आज तक कोई शेर जाल तोड़ पाया हो। दूसरा तरीका है जाल फसे चूहे की तरह। चूहा कभी भी जाल तोड़ने में ताकत नहीं लगाता बल्कि जाल का एक एक तार काटने लगता और अपने निकले लायक जगह बनते ही भाग जाता है। हम कुछ शेर तरह ही करते पूरी समस्या ही एक साथ खत्म करना चाहते है। यदि पूरी समस्या को खत्म करने में ध्यान न लगा कर सिर्फ एक दो तार काटकर निकलने लायक जगह बनाई जाये तो ज्यादा बेहतर होगा।

शुक्रवार, 13 जून 2008

एक कविता



तोड़कर क्राकरी जब महरी आँख दिखाती है
काम छोड़ने को कह कर धमकाती है।
चाय में नमक और सब्जी में चीनी पड़ जाती है
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।
सब्जी साबुत रहती है और उंगली कट जाती है।
रोटी कच्ची रहती है और उंगली जल जाती है।
खाना खाने की जगह पेट भर लेता हूँ।
पेन्ट की जगह पजामा पहन लेता हूँ।
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।
तुम्हारा लड़ना तुम्हारा झगड़ना।
बात बात पर तुम्हारा अकड़ना।
तुम्हारा मुस्कराना, तुम्हारा प्यार जताना।
जरासी बात पर अपना मुंह फुलाना।
तन्हाई मुझे सब याद दिलाती है।
सच कहूँ प्रिये तुम्हारी याद आती है।

बुधवार, 11 जून 2008



हमने लेख भी ऐसे लिखे
जिसने पढ़े वही हिले।
कलम, कागज, सब मिले
पर ना आप जैसी लिखे।
कुछ हमको भी लिखना आ गया
जब कागज पर पेन चले।
शब्द दर शब्द तुकबंदी मिलाई
हमको लगा कि गज़ल लिखे।
भ्रम में खुद को शायर समझे
हर शायर से उलझ गये।
देख कर आपकी गज़ल हम,
अजीत खुद की औकात समझ गये।
09235133411

मंगलवार, 10 जून 2008

हमाम

कोई कपड़ो में गया, कोई तौलिये में गया
हमाम में हर कोई नहाने ही गया।
जिंदगी में जो भी सीखा था अच्छा बुरा,
हमाम में वो गुनगना के ही गया।
घिन आने लगी है जाने में अन्दर,
कोई इतना हमाम को गंदा कर गया
जल रहा था जो बल्ब वो भी साथ ले गया
उसकी नियत में साथ खोट था तभी तो
बल्ब के साथ बो साबुन भी लेकर गया।
खुद तो खूब नहाया हमाम में वो पर
जाते जाते किसी के न नहाने लायक कर गया।
सीना जोरी तो देखिये उसकी आप
जाते जाते कुंडी भी बन्द कर के गया।
शौक से नहाने वालों के वो दुखी कर गया।
और अजीत धुन में कविता लिख गया।

शहीद भगत सिंह

शहीद भगत सिंह की कुछ दुर्लभ तस्वीरों के दर्शन के लिये यहाँ क्लिक करें।

सोमवार, 9 जून 2008

जट्रोपा के बारे में aboutJatropha




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जट्रोफा के बारे में ज्यादा जानने के लिए
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क्या भरोसा जीवन का



क्या भरोसा जीवन का, एक बुलबुला है,
न जाने कब टूट जाये कब तक सलामत है।

यह पंक्तियां कभी किसी साधु महराज के प्रवचन में सुनी थी पर समझ नहीं आयीं. पर शुक्रवार 06.06.2008 की एक घटना ने शायद इसका अर्थ स्वंय ही समझा दिया। मेरे कार्यालय के एक अधिकारी महोदय जो कि कोलकाता से संबधित थे तथा यहाँ कानपुर तैनाथ थे, अपने पुत्र से मिलने सियालदाह राजधानी से कोलकाता जा रहे थे कि कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन पर ह्रदयगति रुक जाने से मृत्यु हो गयी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एक दम बिल्कुल ठीकठाक लग रहे थे परन्तु एक दम से गिरे और जब तक कुछ समझ पाये तबतक मृत्यु हो चुकी थी।
क्या जिंदगी इतनी अनिश्चित है?

बुधवार, 4 जून 2008

मुझे किसी नाम से पुकारो मैं केवल माँ हूँ।



मंगलवार, 3 जून 2008

शराफत का चेहरा



शराफत का डंका पीटने वाले का असली चेहराः

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