सोमवार, 5 मई 2008
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सच है जब वो आयें तो किसी की जरुरत नहीं । उनसे हसींन कोई जीच नहीं.
पर श्रंगार को उनके फूलों की जरूरत पड़ ही गई।
पर निहारने को उनको सितारों की जरुरत पड़ ही गई।
स्वागत में भँवरे उनके गीत गुनगना ही गये।
आखों में उनके कई सागर लहरा ही गये।
तपिस ने उनकी सूरज का अहसास करा ही दिया।
प्यार ने उनके चाँदनी का से रुबरु करा ही दिया।
वो है ही इतने खास कि उनकी मौजदगी नें ही
इन सबका एहसास करा ही दिया।
वो वो है जो खास है जिनके साथ विश्वास है
वो हैं प्रीतम, दोस्त और आप है।
लिखते रहै हमें आप चाहे वो पत्र ईमेल या स्क्रेप हो
हम यहाँ हो आप वहाँ हो कोई भी कही भी हो।
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