सोमवार, 19 नवंबर 2012

झांसी की रानी

अभिशेक बच्चन की लड़की का जन्मदिवस याद रखने वाले को क्या आज वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिवस (19.11.1828) याद रहा। http://www.hindi-bharat.com/2009/11/blog-post_18.html

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

सनातन धर्म में अवतार की अवधारणा और सृष्टि का विकास

सनातन धर्म में अवतार की अवधारणा और सृष्टि का विकास सनातन धर्म में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों एवं उनके कारणों का वर्णन मिलता है। लगभग सभी अवतारों का मुख्य उद्देश्य वेद सम्मत व्यवस्था को लाना तथा दुष्ट प्रवित्तयों को खत्म करना ही रहा है। लगभग सभी अवतार में किसी न किसी राक्षस के आतंक का अंत करना ही बताया गया है। लेकिन सृष्टि के विकास क्रम को विज्ञान की दृष्टि अवतारों को देखें तो इन अवतारों के माध्यम से हमें सृष्टि के विकास का क्रम भी मिलता है जो कि विज्ञान क्रम से मिलता है। भगवान का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार कहा गया है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की थी। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया। विज्ञान की दृष्टि में यदि हम देखते हैं तो जीवन का आरंभ जल में (समुद्र) में ही हुया है। और समुद्र से जीवन थल पर तब आया जब पृथ्वी पर सूर्य की परा बैगनी किरणों को रोकने कि लिए ओजोन पर्त का निर्माण हुआ। द्धितीय अवतार कूर्म अवतार माना जाता है। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों (लक्ष्मी , मणि, रम्भा, वारूणी, अमृत, शंख, गजराज (ऐरावत), कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, कामधेनु, धनुष, धन्वतरि, विष, बाज पक्षी) की प्राप्ती की। (इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।) विज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी पर ओजोन पर्त का निर्माण हो गया तो जीवन का विकास थल पर शुरु हुया जो कि समुद्र के जीवों के द्वारा ही किया गया। अगर ध्यान से देखे तो कूर्म (कछुआ) पानी में ज्यादा रहता है। परन्तु साँस लेने के लिए हर 10-15 मिनट बाद पानी से बाहर आता है। यानि कि ऐसा जीव जो थल कम और पानी में ज्यादा रहता हो। तृतीय अवतार वराहावतार : वराह के अवतार में भगवान विष्णु ने महासागर में जाकर भूमि देवी कि रक्षा की थी, जो महासागर की तह में पँहुच गयीं थीं। एक मान्यता के अनुसार इस रूप में भगवान ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध भी किया था। जब जीवन थल पर आया तो ऐसे जीव थल पर आये जो कि जल मे ज्यादा और थल पर कम रहते थे। अगर वराह (सूकर) को ध्यान से देखे तो यह एक ऐसा जीव जो कि कीचड़ ज्यादा पसंद करता न कि जल। Amphibians क्लास के जीव. चतुर्थ अवतार नरसिंहावतार नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी और उसके पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस अवतार से भगवान के निर्गुण होने की विद्या प्राप्त होती है। इसी अवतार को जब विज्ञान की दृष्टि में रखकर देखते हैं तो हम पाते है कि इस समय तक मानव का आदिरुप प्रकट हो चुका था साथ ही मनुष्य के जीवन में सामाजिक संगठन गठित हो चुका था परन्तु वह आज के मानव (Homo sapiens ) काफी पीछे था मुख्य वास जंगल ही था। देखने में बहुत मानव और जानवर का मिला जुला रुप था। यानी मानव समाज ने एक सामाजिक संगठन बना लिया था परन्तु वह संगठन बहुत जटिल नहीं था। आज भी भारत में कई जन-जातियां आदि जीवन यापन करती है। उनके रहने का ढ़ंग भी बिलकुल आदिम युग ही है यहां तक कुछ जन-जातियां ने अभी वस्त्र भी पहनने नहीं सीखे है, या सीख रहे हैं । परन्तु उनमें भी एक सामाजिक संगठन है। और कई संगठन को मिलाकर जो एक मुखिया बनता है। उसे वह कैप्टन कहते है। पाठक जरूर सोचेंगे कि वस्त्र पहननें आये नहीं परन्तु अंग्रेजी भाषा का शब्द कहां से सीख लिया तो इसका उत्तर यह है कि यह जन-जातिया कुछ समय तक अंग्रेजी और जापान के अधीन क्षेत्र में निवास करती रही हैं। बतौर उदाहरण अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाली कुछ जनजातियां (जरावा, सेंटीनल इत्यादि)। पंचमवामन् अवतार: इसमें विष्णु जी वामन् (बौने) के रूप में प्रकट हुए। भक्त प्रह्लादके पौत्र, असुरराज राज बलि से देवतओं की रक्षा के लिए भगवान ने वामन अवतार धारण किया। इसी अवतार को आधुनिक ज्ञान की दूष्टि से देखे तो मानव का जीव विज्ञान की परिभाषा के अनुसार ( Homo sapiens) का प्रादुर्भाव हो चुका था साथ ही उसका सामाजिक संगठ एक राज्य रुप जो गठित हुया था उसमें बुराई को रोकने के प्रयास भी शुरू हो चुके थे। षष्ठ अवतार परशुराम अवतार: इसमें विष्णु जी ने परशुराम के रूप में असुरों का संहार किया। आधुनिक विज्ञान के अनुसार मानव के विकास की वह अवस्था थी जिसमें कि मानव ने अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग भी सीख लिया था परन्तु ज्यादातर अस्त्र ज्यादा घातक नहीं थी इसी युग में राज विस्तार जैसी मानसिकता भी देखने को मिलती है। परशुराम का मुख्य अस्त्र फरसा था इसी युग में एक अवतार और हुया था जिसमें विकास के क्रम और विनासक शस्त्र सामनें आये। पशुधन के साथ साथ खेती का प्रयोग भी शुरु हो चुका था। सप्तम राम अवतार: राम ने रावण का वध किया जो रामायण में वर्णित है। इस समय में परशुराम और राम के युग का संधिकाल हुआ। मानव विकास के क्रम में नये और ज्यादा मारक क्षमता के अस्त्र और शस्त्र सामने आये। मुख्य व्यवसाय पशु-पालन था। लोग प्रकृति पर ही निर्भर रहते थे। अष्टम कृष्णावतार: भगवान श्रीकृष्ण अपने सव््ाभाविक रूप मे देवकी और वसुदेव के घर जन्म लिया था। उनका लालन पालन यशोदा और नंद ने किया था। इस अवतार का विस्तृत वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण मे मिलता है। मानव विकास क्रम को देखे तो इस युग में प्रकृत की पूजा की परंपरा विद्यमान थी। परन्तु कृषि का उपयोग शुरु हो चुका था। मानव ने कृषि को एक व्यवसाय के रुप में ग्रहण कर लिया था। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का मुख्य अस्त्र हल ही था जो कि कृषि का प्रतीक है। नवम बुद्ध अवतार: इसमें विष्णुजी बुद्ध के रूप में असुरों को वेद की शिक्षा के लिये तैयार करने के लिये प्रकट हुए। मानव विकास के क्रम में इस काल में मानव ने शिक्षा को आम जन तक पहुचाने का प्रयास किया। दूसरे शब्दों में शिक्षा के महत्व को पहचान कर उसे आम जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। कुछ लोग इस अवतार को गौतम बुद्ध से जोड़कर देखते है। परन्तु गौतम बुद्ध का कार्यक्षेत्र ज्यादातर उत्तरी क्षेत्र रहा जबकि बुद्दावतार में बुद्ध का कार्य क्षेत्र दक्षिण भारत रहा। दसम कल्कि अवतार: इसमें विष्णु जी भविष्य में कलयुग के अंत में आयेंगे। चूंकि यह अवतार अभी हुया नहीं है। इस लिए मानव विकास क्रम में किस बिन्दु की ओर इशारा करता यह स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। परन्तु इतना ज़रुर है कि कलयुग का अंत में जब पाप बहुत बढ़ जायेगा तो उसे खत्म करने को यह अवतार होगा। पाप क्या है और उस समय क्या होगा यह आज के समय को ध्यान में रखकर अनुमान लगाया जा सकता है। घोषणाः (इस लेख के में दिये गये विचार मेरी अपनी जानकारी, विचार पर आधारित हैं यदि किसी प्रमाणिक तथ्य के विपरीत मेरे विचार है तो उस प्रमाणिक तथ्य को ही माना जाए। इस लेख का उद्देश्य एक सामान्य सी जानकारी देना भर है न कि किसी की भावनाओं आहत करना । यदि किसी की भावना आहत होती है तो उसके लिए में क्षमा प्रार्थी हूँ।) अजीत कुमार मिश्रा, Email- ajitkumarmishra@hotmail.com पी-33/2, ओल्ड एम.एच. एरिया, कानपुर छावनी-208004 दूरभाषः 9807588355, 8090030844

सोमवार, 3 सितंबर 2012

घोटाले और कांग्रेस

कांग्रेस के पाँच पूरे होने पर एक साथ सभी घोटालों को शेयर और टिप्पणी करेंगें तब तक चुप रहना ही ठीक कहाँ तक रोज टिप्पणी करें। इससे अच्छा तो पहले इसको 2014 में बाहर का रास्ता दिखायें फिर कुछ और करें।

शनिवार, 28 जुलाई 2012

सभी मित्रों को बडे हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि आज मैं 500 ग्राम अरहर दाल 250ग्राम आलू, 100 चीनी बाजार खरीद लाया हूँ । इसको 4 हफ्ते चलाने का मेरा लक्ष्य है। सभी आगुंतक मित्रो से निवेदन है। कि मेरे इस लक्ष्य को साधने में सहयोग करें।
सभी मित्रों को बडे हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि आज मैं 500 ग्राम अरहर दाल 250ग्राम आलू, 100 चीनी बाजार खरीद लाया हूँ । इसको 4 हफ्ते चलाने का मेरा लक्ष्य है। सभी आगुंतक मित्रो से निवेदन है। कि मेरे इस लक्ष्य को साधने में सहयोग करें।

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

बागवान और बच्चे

http://ajitkumarmishra.blogspot.com/logout?d=http://www.blogger.com/logout-redirect.g?blogID%3D6495873790563591772 आज (19.07.2012) को दैनिक जागरण कानपुर संस्करण में एक खबर पढ़ी के बागवान को छोड़ गये लावारिस। यह घटना यानी 18.07.2012 की है। इसी दिन मेरे ब्लाक में एक कुतियां के 7 बच्चो में से एक की मृत्यु हो गयी। उसको बचाने के लिए उसने हर वो प्रयास किया जो एक जानवर एक माँ कर सकता था। जहाँ से उसे रोटी मिल जाती था हर उस दरवाजे पर उसको रखा, कुछ देर के लिए धूप में रखा, लगाता चाटती रही। पर जब न बचा सकी तो कल से आजतक बिल्कुल चुपचाप पड़ी रही न किसी का दिया खाना ही खाया न ही जिनको देखकर पूंछ हिला कर प्रेम प्रकट करती वो ही किया। इस घटना से बार सोचता हूँ कि जैसे लोग बुजर्ग माँ बाप को कहीं छोड़कर चले जाते है कुछ झंझटों से बचने के लिए। अगर इस दुनिया में माँ बच्चे पालने के झंझट से मुक्ति पाने के लिए बच्चो को छोड़ने लगी तो इस प्रकृति एवं समाज का क्या होगा।

मंगलवार, 19 जून 2012

टूथपेस्ट या टॉक्सिक-वेस्ट

टूथपेस्ट या टॉक्सिक-वेस्ट डॉ. योहाना बडविग का कैंसररोधी आहार–विहार

सोमवार, 28 मई 2012

अच्छी आदतें



HAND BOOK 2009

Health:
1. Drink plenty of water.
2. Eat breakfast like a king, lunch like a prince and dinner like a beggar.
3. Eat more foods that grow on trees and plants and eat less food that is manufactured in plants.
4. Live with the 3 E's -- Energy, Enthusiasm, and Empathy.
5. Make time to practice meditation, yoga, and prayer.
6. Play more games.
7. Read more books than you did in 2008.
8. Sit in silence for at least 10 minutes each day.
9. Sleep for 7 hours.
10. Take a 10-30 minutes walk every day. And while you walk, smile.
Personality:
11. Don't compare your life to others'. You have no idea what their journey is all about.
12. Don't have negative thoughts or things you cannot control. Instead invest your energy in the positive present moment.
13. Don't over do. Keep your limits.
14. Don't take yourself so seriously. No one else does.
15. Don't waste your precious energy on gossip.
16. Dream more while you are awake.
17. Envy is a waste of time. You already have all you need.
18. Forget issues of the past. Don't remind your partner with his/her mistakes of the past. That will ruin your present happiness.
19. Life is too short to waste time hating anyone. Don't hate others.
20. Make peace with your past so it won't spoil the present.
21. No one is in charge of your happiness except you.
22. Realize that life is a school and you are here to learn. Problems are simply part of the curriculum that appear and fade away like algebra class but the lessons you learn will last a lifetime.
23. Smile and laugh more.
24. You don't have to win every argument. Agree to disagree.
Society:
25. Call your family often.
26. Each day give something good to others.
27. Forgive everyone for everything.
28. Spend time with people over the age of 70 & under the age of 6.
29. Try to make at least three people smile each day.
30. What other people think of you is none of your business.
31. Your job won't take care of you when you are sick. Your friends will. Stay in touch.
Life:
32. Do the right thing!
33. Get rid of anything that isn't useful, beautiful or joyful.
34. GOD heals everything.
35. However good or bad a situation is, it will change.
36. No matter how you feel, get up, dress up and show up.
37. The best is yet to come.
38. When you awake alive in the morning, thank GOD for it.
39. Your Inner most is always happy. So, be happy.
Last but not the least:
40. Please Forward this to everyone you care about.
मेरे कई साथी गाँव कक्षा 1 से 8 तक 5 से 8 किलोमीटर पैदल चलकर आते जाते थे. पर आज तो मेरे बच्चों से ज्यादा उनकी माँ को फिक्र रहती कि 2 किमी देर साइकिल जाने में बच्चा थक जायेगा। ग्लूकोज पाउडर मैने बिना किसी जरुरत के पहली बार अपनी मेहनत (घर काम होने पर एक मजदूर मेरी जिद पर कम लगाया गया था और उसकी मजदूरी की बजत के बदले मे माँ से जिद करके एक ग्लूकोज पाउडर मगाया था) की कमाई से पिया था। सच कहता हूँ मेरी दिन कच्चे मकान के लिए मजदूरो के साथ मिट्टी उठवाता था फावड़ा चलाता था और शाम को जब ग्लूकोज पाउडर एक गिलास पानी में घोल कर जब माँ के हाथ से पीता था तो माँ की सारी चिंता और मेरी थकान मिट जाती थी यह घटना मेरी 10-11 साल की उम्र की है। आज मेरे पास अपना परिवार है। घर में ग्लूकोज पाउडर भी है। पर माँ नहीं है। यह सब मैं माँ-बाप की तश्वीर के सामने बैठकर लिख रहा हूँ और उनको भी याद कर रहा हूँ।

बुधवार, 7 मार्च 2012

HOLI O HI JI SWADHEENTA KA AAN BAN JAYE HOLI O HI JO SWATANTRA KA SAAN BAN JAYE BHARO PICHKARI ME YESE 3 RANGO KO JO KAPRE PE PARE TO HINDUSTAN BAN JAYE HAPPY HOLI. Ajit Kumar Mishra

सोमवार, 5 मार्च 2012

सरस्वती देवी की पूजा

अक्सर किसी भी समारोह की शुरुआत सरस्वती देवी की पूजा के द्वारा ही होती है। और यह पूजा करने का (दीप जलाकर) एक मात्र अधिकार मुख्य अतिथि का ही होता है। पर इस परम्पर का निर्वाह करने वाला (मुख्य अतिथि) शायद कभी जूते उतार कर सरस्वती देवी की पूजा करता हो। परन्तु बाते भारतीय संस्कृति की करेंगा। ताली भी खूब बजती हैं। परन्तु कभी मुख्य अतिथि से जूते उतार कर पूजा करने को कोई नहीं कहता और मुख्य अतिथि भी ऐसा करनें में अपना अपमान समझता है। मैं अभी तक जितने भी समारोह मे गया मुझे अभी तक ऐसा अनुभव नहीं हुया जब किसी मुख्य अतिथि ने दीप जूता उतार कर जलाया हो।