मंगलवार, 20 जुलाई 2010


शहर ने दिया उत्तर भारत को पहला सिनेमा
कानपुर, शिक्षा संवाददाता : उत्तर भारत में औद्योगिक शुरुआत के साथ-साथ व्यवस्थित सिनेमा का श्रीगणेश भी कानपुर से ही हुआ था। कोलकाता की एक कंपनी चवरिया टाकीज प्राइवेट लिमिटेड ने यहां 1929 में पहला सिनेमाघर बैकुंठ टाकीज की स्थापना की। 1930 में इसे पंचम सिंह ने खरीद लिया और नाम बदलकर कैपिटल टाकीज कर दिया। चूंकि पूरा सिनेमाघर टिन के नीचे था, इसलिए इसको भड़भडि़या टाकीज भी कहते थे। क्राइस्टचर्च कालेज के इतिहास विभाग के एचओडी प्रो. एसपी सिंह कहते हैं कि 1930-40 का दशक कानपुर के सिनेमा का स्वर्णिम युग था। यहां 1936 में मंजुश्री (प्रसाद बजाज) जो आज भी स्टेशन के पास चल रहा है, 1936-37 में शीशमहल, जहां अब शापिंग काम्प्लेक्स है की स्थापना हुई। 1946 में गुमटी नंबर पांच रेलवे लाइन के किनारे जयहिंद टाकीज बनी। यह अब व्यवसायिक मार्केट में बदल गया। इसी साल न्यू बसंत (जवाहर लाल जैन) व शालीमार (लाला कामता प्रसाद) सिनेमाघर बने। ये दोनो बंद हो चुके हैं। 1940-41 में इंपीरियल सिनेमाघर बना था। इसमें भी ताला पड़ गया है। सबसे पहले 1920 में अंग्रेजों ने अपने लिए कुछ सिनेमाघर बनाये थे। इनमें से कुछ बंद हो गये तो कुछ कालांतर में भारतीयों के हाथ बिक गये। उदाहरण के लिए अंग्रेजों ने एस्टर व प्लाजा टाकीजें बनाईं थी जिसका बाद में नाम क्रमश: मिनर्वा तथा सुंदर पड़ा। बाद में शालीमार का नाम डिलाइट हो गया। टाकीज को सुंदर सुव्यवस्थित बनाने की शुरुआत दादा साहेब फाल्के पुरस्कार विजेता सूरज नारायण गुप्ता ने नारायण टाकीज बनाकर की। नारायण एअर कूलिंग, प्लास्टर ऑफ पेरिस जड़ी दीवारों सहित दूसरी तकनीक से युक्त थी। 70 व 80 के दशक में सिनेमाघर भव्य होने लगे। हीर पैलेस, सत्यम, अनुपम, संगीत, गुरुदेव, संगम, पम्मी, इम्पीरियल आदि इसी श्रेणी की टाकीजें हैं। बाद में नारायण, अनुपम, नटराज, न्यूबंसत व नटराज एक साथ बंद हुए। इनके भवनों का उपयोग दूसरे कामों में हो रहा है। सबसे पहले देखी आलमआरा कानपुर में सबसे पहली फिल्म आलमआरा दिखायी गयी। पहली टेक्नीकलर फिल्म झांसी की रानी दिखायी गयी। सबसे लंबी फिल्म जो दिखायी गयी वह हातिमताई थी। 1933 में कैपिटल में लगी यह फिल्म 52 रीलों की थी। दस घंटे की यह फिल्म शाम 6 बजे शुरू होकर सुबह 4 बजे समाप्त होती थी। चार इंटरवल होते थे। जब छपा टिकट या पास नहीं था तो हाथ पर मुहर लगाकर लोगों को टाकीज में जाने की अनुमति मिलती थी। पहले सिनेमाघरों ने अपनी-अपनी पसंद वाले विषयों की फिल्में चुन रखीं थी। रीगल हमेशा अंग्रेजी, कैपिटल मारधाड़, मंजुश्री धार्मिक, विवेक ऐतिहासिक व सुंदर पारिवारिक फिल्में दिखाता था। रिकार्ड बने कानपुर में सबसे पहले मदर इंडिया ने (सुंदर टाकीज 25 हफ्ते) सिल्वर जुबली मनायी। सबसे अधिक चलने वाली फिल्म शोले (75 हफ्ते, संुदर टाकीज) रही। मुगले आजम (60 हफ्ते विवेक टाकीज), गंगा यमुना (50 हफ्ते, सुंदर टाकीज) ने रिकार्ड बनाया। काजल, गाइड, पालकी, मेरे महबूब, दिल लिया, राम श्याम, सावन भादौं आदि फिल्में एक ही टाकीज में 25 हफ्ते तक चलीं।

साभार दैनिक जागरण कानपुर संस्करण दिनांक 20.07.2010

सोमवार, 5 जुलाई 2010

पेट्रोल की कीमत


एक लीटर पेट्रोल की कीमत 16.50 रुपये!
लखनऊ,जासं : एक लीटर पेट्रोल के लिए 54.87 रुपये खर्च करने वाले क्या जानते हंै कि तेल की वास्तविक कीमत क्या है? यदि नहीं तो जान लीजिये, एक लीटर पेट्रोल कीमत 16.50 रुपये है। बाकी सब टैक्स। एक जानकारी और लीजिए। देश में एक लीटर पेट्रोल पर 11.80 रुपये केंद्रीय कर, 9.75 रुपये एक्साइज ड्यूटी, चार रुपये सेस के साथ ही प्रदेश सरकार आठ रुपये टैक्स लेती है। सब मिलाकर एक लीटर पेट्रोल की कीमत होती है, 48.05 रुपये। बाकी का पैसा कहां जाता है, मालूम ही नहीं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी स्टेट काउंसिल द्वारा जारी आंकड़ों में तेल के पीछे चल रहे खेल पर निशाना साधा गया है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में एक लीटर पेट्रोल 26 रुपये लीटर, बांग्लादेश में 22 रुपये लीटर, नेपाल में 24 रुपये लीटर, अफगानिस्तान में 36 रुपये लीटर, बर्मा में 30 रुपये लीटर, क्यूबा में 19 रुपये लीटर और कतर में एक लीटर पेट्रोल 30 रुपये में है। उधर, लखनऊ पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन भी प्रत्येक लीटर पेट्रोल पर काफी टैक्स लगने की बात कहता है। एसोसिएशन सदस्यों का कहना है कि तेल कंपनियों द्वारा पेट्रोल पंप को जारी बिलों में सारे टैक्स शामिल रहते हैं और इनका ब्योरा नहीं रहता है। इन बिलों के ऊपर डीलर प्रति लीटर पेट्रोल करीब 1.08 रुपये तथा प्रति लीटर डीजल 67 पैसे कमीशन लेता है।
साभार दैनिक जागरण कानपुर संसकरण 5 जुलाई 2010